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नज़र में वो सब की मुहाज़िर रहा है / रंजना वर्मा

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नज़र में वो सब की मुहाज़िर रहा है
कि सिजदे में उस का झुका सिर रहा है

ग़मों की कमी थी कभी जिंदगी में
मगर ग़म हमें ढूंढ़ता फिर रहा है

उजाले की कोई किरण है न बाक़ी
अँधेरा बहुत हर तरफ घिर रहा है

रही जिंदगी की कहानी अधूरी
भटकता हमेशा मुसाफ़िर रहा है

फँसी आज तूफ़ान में टूटी कश्ती
कहीं कोई तिनका नहीं तिर रहा है

बना एक मूरत परस्तिश जो कर ली
कहें लोग उस को कि काफ़िर रहा है

शिकायत करें रब से या ज़िंदगी से
ये गुरबत में कैसा कहर गिर रहा है