भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नज़र में हर दुश्वारी रख / 'अमीर' क़ज़लबाश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नज़र में हर दुश्वारी रख
ख़्वाबों में बेदारी रख

दुनिया से झुक कर मत मिल
रिश्तों में हम-वारी रख

सोच समझ कर बातें कर
लफ़्ज़ों में तह-दारी रख

फ़ुटपाथों पर चैन से सो
घर में शब-बेदारी रख

तू भी सब जैसा बन जा
बीच में दुनिया-दारी रख

एक ख़बर है तेरे लिए
दिल पर पत्थर भारी रख

ख़ाली हाथ निकल घर से
ज़ाद-ए-सफ़र हुश्यारी रख

शेर सुना और भूखा मर
इस ख़िदमत को जारी रख