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नदी का होना- न होना / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

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नदी का होना - न होना
है बराबर
नदी में अब जल नहीं है
 
बावरे हो
पाँव धोने आ गये फिर, भाई
तुम इसके किनारे
हाँ, यही सच
कभी इसके तटों पर थे
मन्त्र कवियों ने उचारे
 
जब यहाँ पर गूँजते थे
ढाई आखर
सुनो, यह वह कल नहीं है
 
इन्हें रोको
आदतन ही जाल लेकर
आ रहे पगले मछेरे
मछलियाँ रहतीं नहीं अब
इस नदी में
कल मरीं वे मुँह-अँधेरे
 
रोज़ लगते थे कभी मेले
यहीं पर
अब कोई हलचल नहीं है
 
बड़े भोले -
आ रहे हैं नये बच्चे
बीनने फिर सीपियों को
क्या करें अब
आ रही जल में सिराने
नव-सुहागिन फिर दियों को
 
नदी होगी आँख उसकी
सोचकर यह-
अब कुशल-मंगल नहीं है