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नया दिन / निदा फ़ाज़ली
Kavita Kosh से
सूरज एक नटखट बालक सा
दिन भर शोर मचाए
इधर-उधर चिड़ियों को बिखेरे
किरनों को छितराए
क़लम, दराँती, ब्रश, हथौड़ा
जगह-जगह फैलाए
शाम!
थकी-हारी माँ जैसी
एक दिया जिलाए
धीमे-धीमे
सारी बिखरी चीज़ें चुनती जाए