भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नयी सदी में बदल रहा है / बाबा बैद्यनाथ झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नयी सदी में बदल रहा है, द्रुतगति से पूरा संसार।
मगर नारियों पर अब भी क्यों, होता इतना अत्याचार।।

पढ़ने लिखने में भी अव्वल, रहने लगी बालिका आज।
फिर भी नहीं सुरक्षित नारी, इसपर हो अब शीघ्र विचार।।

आगे बढ़ती जाती बच्ची, रहती है वह क्यों भयभीत।
मिला हुआ है कानूनी भी, इसको भी तो सम अधिकार।।

घर से बाहर वह जब जाती, रहना पड़ता उसे सतर्क।
उसके पुनि वापस आने तक, चिन्तित रहता है परिवार।।

देख आपदा करती ही है, हैवानों का वह प्रतिरोध।
कई भेड़िये मिलकर करते, उस पर तब सामूहिक वार।।

युक्ति और साहस के बल पर, बचने का वह करे उपाय।
शक्ति क्षीण होने पर अबला, हो जाती है तब लाचार।

अन्त समय में विधना पर वह, मढ़ने लगती है सब दोष।
या बन जाती खड़्ग उठाकर, वह काली दुर्गा अवतार।।