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नये समय को साधो, कबिरा / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

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बड़े चतुर हो
नये समय को साधो, कबिरा
तो जानें
 
तुमने बीनी नेह-चदरिया
युगों गई ओढ़ी
फेंक आये उसको कल बच्चे
यही पीर पोढ़ी
 
नये किसिम के
ताने-बाने बाँधो, कबिरा
तो जानें
 
'काली कमली' सूरदास की
रंग चढ़ा दूजा
हमने समझा उसे 'बिदेसी'
और उसे पूजा
 
अपने सिर पर
नये साज ये लादो, कबिरा
तो जानें
 
'राम-रहीम' कहाँ के मालिक
कहाँ 'लाल' लाली
सबके हाथ भरे सपनों से
आँखें सब खाली
 
नये समय के
देवों को अवराधो, कबिरा
तो जानें