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नहीं एक दिल की लगी छूटती है / गुलाब खंडेलवाल

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नहीं एक दिल की लगी छूटती है
भले ही भरी ज़िन्दगी छूटती है

वे घबराके यों मेरी बाँहों में आये
पहाड़ों से जैसे नदी छूटती है

नहीं है कोई और तो साथ मेरे
ये किसकी हँसी पर हँसी छूटती है

पहुँच आज किन घाटियों में गया मैं
यहाँ पर तो हर दोस्ती छूटती है

उमर सर झुकाए चली जा रही है
उमंगो की आवारगी छूटती है

हरेक साध ऐसे निकलती है मन से
कि जैसे कोई फुलझड़ी छूटती है

वही हैं सभी प्यार की रंगरलियाँ
ये दुनिया भरी की भरी छूटती है

सवेरे-सवेरे गए छोड़कर वे
नहीं मन से अब भैरवी छूटती है

गुलाब! आपका दिल पिरोना था जिसमें
वही एक उनसे लड़ी छूटती है