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नहीं जो करता कभी भी भूल है / रंजना वर्मा

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नहीं जो करता कभी भी भूल है।
हित उसी के पंथ हर अनुकूल है॥

विकल मानव अर्थ के हित है तड़पता
किंतु जीवन एक मुट्ठी धूल है॥

अर्थ संचय को चरम उद्देश्य समझे
मूढ़ मानव की यही तो भूल है॥

ढंग से जीना गमन असि धार जैसा
समझना मत ज़िन्दगी यह फूल है॥

कंटकों से पंथ है आकीर्ण सारे
समस्या का उगा वृक्ष बबूल है॥

विवशता कि ठोकरें आघात मग के
बिखरता पग-पग यहाँ पर शूल है॥

 साथ हो यदि सत्य का आसान है पथ
अन्यथा आपत्तियों का कूल है॥