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नानी जी का घर / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
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मई महीना आता है और,
जब गर्मी बढ़ जाती है ।
नानी जी के घर की मुझको,
बेहद याद सताती है ।।
तब मैं मम्मी से कहती हूँ,
नानी के घर जाना है ।
नानी के प्यारे हाथों से,
आइसक्रीम भी खाना है ।।
कथा-कहानी मम्मी तुम तो,
मुझको नही सुनाती हो ।
नानी जैसे मीठे स्वर में,
गीत कभी नही गाती हो ।।
मेरी नानी मेरे संग में,
दिन भर खेल खेलती है ।
मेरी नादानी-शैतानी,
हँस-हँस रोज़ झेलती हैं ।।
मास-दिवस गिनती हैं नानी,
आस लगाए रहती हैं ।
प्राची-बिटिया को ले आओ,
वो नाना से कहती हैं ।।