नामविश्वास-3 
(69) 
सब अंग हीन, सब साधन बिहीन मन-,
 बचन मलीन, हीन कुल करतुति हौं।
 बुधि-बल-हीन, भाव-भगति-बिहीन,
 हीन, गुन, ग्यानहील, हीन भाग हूँ बिभूति हौं। 
तुलसी गरीब की गई -बहोर रामनामु,
 जाहि जपि  जीहँ रामहू को बैठो धूति हौं। 
प्रीति रामनामसों  प्रतीति रामनामकी,
 प्रसाद रामनामकें पसारि पाय सुतिहौं।।
(70)
मेरें जान जबतें हौं  जीव ह्वै जनम्यो जग, 
तबतें  बेसाह्योे दाम लोह, केाह , कामकेा,। 
मन तिन्हींकी सेवा, तिन्ही सों भाउ नीको, 
बचन बनाइ कहौं  ‘हौं गुलाम रामको’।। 
नाथहूँ न अपनायो, लोक झूठी ह्वै परी, पै, 
प्रभुहु तें प्रबल प्रतापु प्रभुनामको। 
आपनीं भलाई भलो कीजै तौ भलाई , न तौ , 
तुलसी खुलैगो खजानो खोटे दामको।।