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नायक को परिहास / रसलीन

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लाइ महावर टीको लिलार दै ओठन काजर कै दृग पीकै।
आए जबै रसलीन लला तब देखत छाइ गए रिस ती कै।
ताहि समय ढिग भामिनी आइ जनाये सखी रसवाद हरी कै।
नैनन में मुस्काइ कह्यो इन बातन तें जनु लागत नीकै॥56॥