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नायक को बिरह / रसलीन
Kavita Kosh से
जैसे तेरो गात नए पातिन रह्यो है रात,
तैसै मेरे गात पेम रात रंग पायो है।
जैसे तू पियन संमुख बैठत है आइ आइ,
तैसै मोंको मदन ही संमुखन छायो है।
जैसे तोहि गरे पर प्रफुल्लित पदतिय घात,
तैसै मोहि प्यारी पद मोद अति लायो है।
हौं तो एक बानि तौं या भेद मोंसो कीन्हों आनि
मो ससोक जानि तू असोक जग आयो है॥55॥