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नासेहा फ़ाएदा क्या है तुझे बहकाने से / रजब अली बेग 'सुरूर'
Kavita Kosh से
नासेहा फ़ाएदा क्या है तुझे बहकाने से
कार-ए-हुश्यार कहीं भी हुआ दीवाने से
न ग़रज़ काबे से मतलब है न बुत-ख़ाने से
है फ़क़त जौक़ मुझे यार के घर जाने से
वो उठा क्या कि अब्र-ए-करम पहलू से
चश्म से चश्म बहे शोख़ के उठ जाने से
सोज़िश-ए-दिल न यक़ीं हो तो जिगर चीर के देख
आबले लाखों पड़े तेरे ही ग़म खाने से