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रजब अली बेग 'सुरूर'
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रजब अली बेग 'सुरूर'
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जन्म | 1785 |
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निधन | 1869 |
जन्म स्थान | |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
रजब अली बेग 'सुरूर' / परिचय |
ग़ज़लें
- अभी से मत कहो दिल का ख़लल जावे तो बेहतर है / रजब अली बेग 'सुरूर'
- फ़स्ल-ए-गुल में जो कोई शाख़-ए-सनोबर तोड़े / रजब अली बेग 'सुरूर'
- इस तरह आह कल हम उस अंजुमन से निकले / रजब अली बेग 'सुरूर'
- करूँ शिकवा न क्यूँ चर्ख़-ए-कुहन से / रजब अली बेग 'सुरूर'
- किस तरह पर ऐसे बद-ख़ू से सफ़ाई कीजिए / रजब अली बेग 'सुरूर'
- क्या ग़ज़ब है कि चार आँखों में / रजब अली बेग 'सुरूर'
- लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शोला अयाँ न हो / रजब अली बेग 'सुरूर'
- मरीज़-ए-हिज्र को सेहत से अब तो काम नहीं / रजब अली बेग 'सुरूर'
- नासेहा फ़ाएदा क्या है तुझे बहकाने से / रजब अली बेग 'सुरूर'
- क़ुरआँ किताब है रूख़-ए-जानाँ के सामने / रजब अली बेग 'सुरूर'
- तर्क जिस दिन से किया हम ने शकेबाई का / रजब अली बेग 'सुरूर'
- यूँ जो ढूँढो तो यहाँ शहर में अन्क़ा निकले / रजब अली बेग 'सुरूर'