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ना म्हारै घर गाम गुरु जी / दयाचंद मायना

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ना म्हारै घर गाम गुरु जी, मात-पिता ना भाई
बेटी करकै डाट लिए हाम शरण आपकी आई...टेक

बिना करे की भुगत सजा, हामनै बिन खोट लई सै
सै दोनूं निर्भाग लाग म्हारै, काफी चोट लई सै
बिफत जली नै जान हमारी, मुट्ठी में घोट लई सै
आसमान नै पटक दई धरती नै ओट लई सै
धरती पै भी नां टेकण नै, किते जगह ना पाई...

क्यूंकर झेलैं चोट बिफत की, इतनी छाती कोन्या
कुआं, झेरा, जोहड़ जंगाह डूबण नै पाती कोन्या
आप जाण कै छेड़ सै, कोए नागण खाती कोन्या
हेजे की बीमारी म्हारे नां की आती कोन्या
हाम दोनुआं तै वा भी डरगी, मौत डाण हड़खाई...

जन्म धार कै सुख ना देख्या, दुख धुर दिन तै ठाया
हाम जाणै थी घट जाग्या, दुख हो सै रोज सवाया
हींस बिड़ा नै, सूल झाड़ा नै, चीर दई म्हारी काया
आज ग्यारा साल हुए इस वण मै, अन्ना पाणी ना खाया
तेरे दर्शन करकै छिकली, हाम थी, भूखी और तिसाई...

कडै ल्हुक लै दुनियाँ कै म्हारी शान खटकरी सै हो
हाम दुखियां के तन म्हं घलकै जान भटक री सै हो
त्रिशंकु की ढाल स्वर्ग तै खोड़ लटकरी सै हो
भव सागर के बीच गुरु जी, नाव अटकरी सै हो
दयाचन्द के बेड़े नै दे, पार लगा रघुराई...