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निगाहें मिलाकर तू जब भी हँसा है / रंजना वर्मा

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निगाहें मिलाकर तू जब भी हँसा है।
सदा ही हमें खूब व्याकुल किया है॥

रहा धड़कनों पर नहीं कोई काबू
नजर में तेरी ऐसा जादू भरा है॥

तेरे सांवरे मुख पर घुंघराली अलकें
झुकी जैसे सावन की काली घटा है॥

रसीले अधर पंखुड़ी से कमल की
तेरी बाँसुरी में नवल सुर जगा है॥

मुकुट से सजाये हुए मोर के पर
सुघर देह पर पीत अंबर सजा है॥

चरण के नखों की अमल कांति तेरे
बसाकर हृदय में बड़ा सुख मिला है॥

मेरे श्याम बस जा हृदय के निलय में
यह तेरे लिये ही तो खाली पड़ा है॥