निर्धन हूँ मैं और नश्वर-
अच्छी तरह मालूम है तुम्हें यह ।
प्रशंसा का तुम बोलते नहीं हो एक भी शब्द ।
पत्थर हो तुम और मैं एक गीत
स्मारक हो तुम और मैं एक चिड़िया ।
अर्थहीन होता है मई का महीना
काल की विराट आँखों के सामने ।
दोष न दो मुझे
मैं तो बस चिड़िया हूँ
मुझे मिली है नियति भारहीन ।
रचनाकाल : 16 मई 1920
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह