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नीलकंठ / लक्ष्मीकान्त मुकुल
Kavita Kosh से
कहते थे दादा जी-‘दशहरा में
नीलकंठ का दर्शन होता है शुभकारी’
कहीं नहीं दिखता नीली गर्दन वाला वह पंछी
चिलबिल, बांस, इमली, गुलर के पेड़ों पर
फुदकता हुआ, फुसफुसाती है हवा कानों में
‘दबोच ले गयी है उसे भी
विकास की आंधी ने’