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नीली परछाइयाँ / वाज़दा ख़ान
Kavita Kosh से
उदासी में लिपटा मन
स्मृति की तमाम परतों को
खोल रहा है
जिनमें बन्द है
केवल और केवल
अपने ही संघर्षों से जूझती
नीली परछाइयाँ ।