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नीली फिल्मों में काम करने वाली लडकियाँ / शरद कोकास

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अच्छा-बुरा जानने की उम्र में वे इतना जानती हैं
कि दिखाई देने वाली इस दुनिया के पीछे
दिखलाई जाने वाली एक दुनिया और भी है
जहाँ कैमरे की आँख से झांकती एक पुरुष की आँख है
जो उनके कपड़े उतारने से पहले उनके कपड़े उतारती है

उनकी झिझक की जड़ों में अनुशासन की मिट्टी है
जिसमें मिली है बचपन में माता-पिता से मिली हिदायतें
इस तरह बैठो टाँगे सिकोड़कर
कि छुपाए जाने वाले अंग किसी को न दिखाई दें
इस तरह चलो कि तुम्हारी ओर उठी नज़रों में
तुम्हारी देह के लिये आमंत्रण न हो
इस तरह देखो कि तुम्हारी आँखों में
लज्जा का भाव सदा उपस्थित रहे
इस तरह बोलो कि तुम्हारी भाषा
तुम्हारे सुसंस्कृत होने का सबूत दे

पेट की आग के इशारों पर उठा पहला कदम
वर्जनाओं के प्रति विद्रोह की दिशा में उठता है
जहाँ सीढ़ी दिखाई देती है
दरअसल वहाँ होता है कुआँ
तमाम अल्लम-गल्म चीज़ों से भरे बाज़ार में
जहाँ कुछ भी बेचा ख़रीदा जा सकता हो
वे चुपचाप औरत से वस्तु में बदल जाती हैं
अनुबंध पर दस्तख़त करने से पहले
मुकम्मल औरत की तरह दिखाई देती हैं वे
फिर किसी आँख का ख़्याल बनती हैं
फिर इशारों पर नाचती परछाईं
और अंत में केवल तस्वीर रह जाती हैं

तेज रोशनी में अपनी पहचान छुपाने की कोशिश करते हुए
उनके अवचेतन में बेडरूम का वह अंधेरा होता है
जहाँ चुंबकीय तरंगों के ज़रिए वे पहुँचाती हैं
बनती हैं किसी की मानसिक अय्याशी का साधन

उनकी अभिनय कला कभी परवान नहीं चढ़ती
उनके लिए ग्लैमर की कोई सम्भावित दुनिया नहीं होती
नहीं होता लोकप्रियता का कोई ख़्याल
सम्मान की कोई गुंजाइश नहीं होती

झिझक संकोच और लुका-छिपी की यंत्रणा के बीच
हर बार वे कामना करती हैं
बस बहुत हो चुका यह अपमान
खु़द के लिए ख़ुद को बेचने के इस व्यापार में
वे जानबूझकर असफल हो जाना चाहती हैं
और बन्द करवा देना चाहती हैं यह व्यापार हमेशा के लिए।

-2002