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न आँख उट्ठी किसी लफ़्ज़-ए-बे-ज़रर की तरफ़ / 'शहपर' रसूल

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न आँख उट्ठी किसी लफ़्ज़-ए-बे-ज़रर की तरफ़
न संग आए कभी शाख़-ए-बे-समर की तरफ़

मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने कर दिया तक़सीम
निगाह घर की तरफ़ है क़दम सफ़र की तरफ़

इस एक वहम में चुप-चाप हैं सूखती शाख़ें
तुयूर लौट न आएँ कहीं शजर की तरफ़

ये मोजज़ा है कि सीने में तीर बैठ गया
अगरचे उस का निशाना था मेरे सर की तरफ़

किसी को देख के ख़ुद पर यक़ीन आया तो
उठी तो आँख किसी नक़्श-ए-बे-हुनर की तरफ़

चली ही आई बिल-आख़िर कई इरादों से
ख़बर हिसार लिए मुझ से बे-ख़बर की तरफ़