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न आने दिया राह पर रहबरों ने / अर्श मलसियानी
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न आने दिया राह पर रहबरों ने
किए लाख मंज़िल ने हमको इशारे
हम आग़ोशे-तूफ़ाँ तो होना है एक दिन
सम्भल कर चलें क्यों किनारे-किनारे
यह इन्साँ की बेचारगी हाय तौबा
दुआओं के बाक़ी हैं अब तक सहारे
यह इक शोब्दा है, कि है मौज दिल की?
किसी को डुबोए किसी को उभारे