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न बदले मन से, सतह पर जरूर बदलेगा / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
न बदले मन से, सतह पर ज़रूर बदलेगा
ये सख़्त बर्फ़ का पत्थर ज़रूर बदलेगा
वो बन के बदलियाँ बरसेगा, मीठे पानी की
मुझे पता था-समंदर ज़रूर बदलेगा
ये बात सोच रही है वो कितने सालों से
वो कुछ महीनों के अन्दरज़रूर बदलेगा
मैं जानता था मिझे इसका ज्ञान था पहले
दिए वचन से, वो विषधर ज़रूर बदलेगा
पुराने घर से बदलना तो एक सपना था
वो अपने घर से निकलकर ज़रूर बदलेगा
वो एकमुश्त कभी भी बदल नहीं सकता
समय के साथ निरंतर ज़रूर बदलेगा
कभी तो अम्न की रुत आएगी ज़माने में
कभी तो युद्ध का तेवर ज़रूर बदलेगा.