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न बोलने पर भी / केदारनाथ अग्रवाल

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न बोलने पर भी,
मैं सुनता हूँ तुम्हारे बोल
तुम्हारी बोलती-आँखों से
जो मुझे
प्यार से पुकारतीं-
और मौन ही
निहारती हैं
हर हमेश,
धूप हो या छाँव-
कड़के बादल-
चमके बिजली-
तड़पें प्राण।

रचनाकाल: २९-०६-१९७९