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पतंग और माँझे / मुकेश निर्विकार

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ऊपर
आसमान में
ऊँचे
और ऊँचे
उड़ाने को बेताब हैं
पतंगे

नीचे धरती पर
पीछे
और पीछे
खिंच रहे हैं
माँझे

फड़फड़ाकर
आ ही गिरेंगी
देर-सवेर
धरती पर
तमाम पतंगे
आसमान की

खुद में चुपचाप
सिमट जाएगे मांझे

कतई बेअसर.....
बिलकुल अंजान......
एकदम खामोश

एक बार फिर से
छुप जाएँगे सारे अपराध
खामोशियों में!