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पता लगाकर सीता का / हनुमानप्रसाद पोद्दार

(राग हंसनारायणी-तीन ताल)
‘पता लगाकर सीताका खुद मिलकर हैं आये हनुमान।
 मेरे, लक्ष्मणकेञ्, रघुकुञ्लकेञ् रक्षक परम महाबलवान॥
 वस्तु न मेरे पास योग्य दूँ जिसको इन्हें आज उपहार।
 ऋञ्णसे मुक्तञ् हो नहीं सकता मैं कदापि, कर चुका विचार॥
 आज इस समय मैं देता हूँ इनको बस, आलिङङ्गन-दान।
 मेरा यह सर्वस्व, महात्मा इससे हों प्रसन्न हनुमान॥
 (यों कह-) पुलकित हु‌ए अङङ्ग सब, उमड़ा राघवकेञ् मन प्रेम अनन्य।
 किया कृञ्तात्मा सेवकको दे गाढ़ालिङगन प्रभुने धन्य॥