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पत्थर की नदी / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
तुम नहीं थी
हवा चलती थी
तुम आज हो
हवा चल रही है
तुम्हारे रहने, नहीं रहने के बीच
हवाओं के मिज़ाज में क्या अन्तर था
मैं नहीं समझ पाया
क्या तुम्हें
हवाओं के नहीं चलने का
इन्तज़ार था?
हवा ! तुम धीरे बहो
उनकी आखों में आज
पत्थरों का सैलाब है।