पद 105 से 106 तक
 
(105)
अबलौं नसानी, अब न नसैहौं। 
राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं।1। 
पायेउ नाम चारू चिंतामनि, उर-कर तें न खसैहों। 
स्यामरूप सुचि रूचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं।2। 
परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं। 
मन-मधुकर पनक तुलसी रघुपति-पद-कमल बसैहौं।3।
(106)
महाराज रामादर्यो धन्य सोई। 
गरूअ, गुनरासि, सरबग्य, सुकृती, सूर, सील,-निधि, साधु तेहि सम न कोई।1।
उपल ,केवट, कीस,भालु, निसिचर, सबरि, गीध सम-दम -दया -दान -हीने।।
नाम लिये राम किये पवन पावन सकल, नर तरत तिनके गुनगान कीने।2। 
ब्याध अपराध की सधि राखी कहा,  पिंगलै कौन मति भगति भेई। 
कौन धौं  सेमजाजी अजामिल अधम, कौन गजराज धौं बाजपेयी।3। 
पांडु-सुत, गोपिका, बिदुर, कुबरी, सबरि, सुद्ध किये, सुद्धता लेस कैसो। 
प्रेम लखि कृस्न किये आने तिनहूको,  सुजस संसार हरिहर को जैसो।4। 
कोल, खस, भील जवनादि खल राम कहि, नीच ह्वै ऊँच पद को न पायो। 
दीन-दुख- दवन श्रीवन करूना-भवन, पतित-पावन विरद बेद गायो।5। 
मंदमति, कुटिल , खल -तिलक तुलसी सरिस, भेा न तिहुँ लोक तिहुँ काल कोऊ। 
नाकी कानि पहिचानि पन आवनो, ग्रसित कलि-ब्याल राख्यो सरन सोऊ।6।