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पद 131 से 140 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 1
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पद संख्या 131 तथा 132
(131)
पावन प्रेम राम-चरन-कमल जनम लाहु परम।
रामनाम लेत होत, सुलभ सकल धरम।
जोग, मख, बिबेक, बिरत , बेद-बिदित करम।
करिबै कहँ कटु कठोर, सुनत मधुर, नरम।
तुलसी सुनि, जानि-बूझि, भूलहि जानि भरम।
तेहि प्रभुको होहि, जाहि सब ही की सरम।।
(132)
राम -से प्रीतमकी प्रीति-रहित जीव जाय जियत।
जेहि सुख सुख मानि लेत, सुख से समुझ कियत।1।
जहँ-जहँ जेहि जोनि जनम महि, पताल, बियत।
तहँ-तहँ तू बिषय-सुखहिं, चहत, लहत, नियत।2।
कत बिमोह लट्यो,फट्यो गगन मगन सियत।
तुलसी प्रभु-सुजस गाइ, क्यों न सुधा पियत।3।