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पद 151 से 160 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 5

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पद संख्या 159 तथा 160

(159)

है प्रभु! मेरेाई सब दोसु।
सील सिंधु कृपालु नाथ अनाथ, आरत-पोसु। 1।

बेष बचन बिराग मन अघ अवगुननिको कोसु।
राम प्रीति प्रतीति पोली, कपट-करतब ठोसु।2।

राग-रंग कुसंग ही सो, साधु-संगति रोसु।
चहत केहरि-जसहिं सेइ सृगाल ज्यों खरगोसु।3।

संभु-सिखवन रसन हूँ नित राम-नामहिं घोसु।
दंभहू कलि नाम कुंभज सोच-सागर-सोसु।4।

मोद-मंगल-मूल अति अनुकूल निज निरजोसु।
रामनाम प्रभाव सुनि तुलसिहुँ परम परितोसु।5।

(160)
 
मैं हरि पतित-पावन सुने।
मैं पतित तुम पतित-पावन दोउ बानक बने।1।

 ब्याध गनिका गज अजामिल साखि निगमनि भने।
और अधम अनेक तारे जात कापै गने।2।

जानि नाम अजानि लीन्हें नरक सुरपुर मने।
दासतुलसी सरन आयो , राखिये आपने।3।