पद 181 से 190 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 5
पद संख्या 189 तथा 190
(189)
राम कहत चलु, राम कहत चलु, राम कहत चलु भाई रे।
नाहिं तौ भव-बेगारि महँ परिहै ,छूटत अति कठिनाई रे।1।
बाँस पुरान साज सब अठकठ, सरल तिकोन खटोला रे।।
हमहिं दिहल करि कुटिल करमचँद मंद मोल बिनु डोला रे।2।
बिषम कहार, मार-मद-माते चलहिं न पाउँ बटोरा रे।
मंद बिलंद अभेरा दलकन पाइय दुख झकझोरा रे।3।
काँट कुराय लपेटन लोटन ठावहिं ठाउँ बझाऊ रे।
जस जस चलिय दूरि तस तस निज बांस न भंेट लगाऊ रे।4।
मारग अगम, संग नहिं संबल, नाउँ गाउँगर भूला रे।
तुलसिदास भव ़त्रास हरहु अब , होहु राम अनुकूला रे।5।
(190)
सहज सनेही रामसों तैं कियो न सहज सनेह ।
तातें भव-भाजन भयो, सुनु अजहुँ सिखावन ऐह। 1।
ज्यों मुख मुकर बिलोकिये अरू चित न रहै अनुहारि।
त्यों सेवतहुँ न आपने, ये मातु-पिता, , सुत-नारि।2।
दै दै सुमन तिल बसिकै, अरू खरि परिहरि रस लेत।
स्वारथ हित भूतल भरे, मन मेचक , तन सेत।3।
करि बीत्यो, अब करतु है करिबे हित मीत अपार।
कबहुँ न कोउ रघुबीर सो नेह निबाहनिहार।4।
जासों सब नातों फुरै, तासों न करी पहिचानि।
तातें कछु समुझ्यो नहीं, कहा लाभ कह हानि।5।
साँचो जान्यो झूठको, झूठे कहँ साँचो जानि।
को न गयो , को जात है , को न जैहै करि हितहानि। 6।
बेद कह्यो, बुध कहत हैं, अरू हौंहुँ कहत हौं टेरि।
तुलसी प्रभु साँचो हितू, तू हियकी आँखिन हेरि।7।