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पद 191 से 200 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3

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पद संख्या 195 तथा 196

 (195)
 
बलि जाउँ हौं राम गुसाईं।
कीजै कृपा आपनी नाई।1।

परमारथ, सुरपुर-साधन सब स्वारथ सुखद भलाई।
कलि सकोप लोपी सुचाल , निज कठिन कुचाल चलाई। 2।

जहँ जहँ चित चितवन हित, तहँ नित नव बिषाद अधिकाई ।
रूचि -भावती भभरि भागहि, समुहाहिं अमित अनभाई।3।

आधि -मगन मन, ब्याधि -बिकल तन, बचन मलीन झुठाई।
 ऐतेहुँ पर तुमसों तुलसीकी प्रभु सकल सनेह सगाई।4।

(196)
 
काहे को फिरत मन, करत बहु जतन ,
मिटै न दुख बिमुख रघुकुल-बीर।
कीजै जो कोटि उपाइ, त्रिबिधि ताप न जाइ।
कह्यो जो भुज उठाय मुनिबर कीर।1।

 सहज टेव बिसारि तुही धौं देखु बिचारि ,
मिलै न मथत बारि घृत बिनु छीर।
समुझि तजहिं भ्रम , भजहिं पद-जुगम,
 सेवत सुगम, गुन गहन गँभीर।2।

आगम निगम ग्रंथ, रिषि -मुनि ,सुर -संत,
 सब ही को एक मत सुनु, मतिधीर।
 तुलसिदास प्रभु बिनु पियास मरै पसु ,

 जद्यपि है निकट सरसरि-तीर।3।