पद 221 से 230 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 2
पद संख्या 223 तथा 224
(223)
आपनो कबहुँ करि जानिहौं ।
राम गरीबनिवाज राजमनि, बिरद-लाज उर आनिहौं।1।
सील-सिंधु , सुंदर, सब लायक, समरथ, सदगुन-खानि हौ।
पाल्यो है , पालत, पालहुगे प्रभु, प्रनत-प्रेम पहिचानिहौ।2।
बेद-पुरान कहत, जग जानत, दीनदयालु दिन-दानि हौ।
कहि आवत, बलि जाऊँ, मनहुँ मेरी बार बिसारे बानि हैा।3।
आरत-दीन-अनाथनिके हित मानत लौकिक कानि हौ।
है परिनाम भलो तुलसीको सरनागत-भय-भानि हौ।4।
(224)
रघुबरहि कबहुँ मन लागिहै?
कुपथ, कुचाल, कुमति,कुमनोरथ, कुटिल कपट कब त्यागिहै।1।
जानत गरल अमिय बिमोहबस, अमिय गनत करि आगिहै।
उलटी रीति-प्रीति अपनेकी तजि प्रभुपद अनुरागिहै।2।
आखर अरथ मंजु मृदु मोदक राम-प्रेम-पगि पागिहै।
ऐसे गुन गाइ रिझाइ स्वामिसों पाइहै जो मुँह माँगिहै।3।
तू यह बिधि सुख -सयन सोइहै, जियकी जरनि भूरि भागिहै।
राम-प्रसाद दासतुलसी उर राम-भगति -जोग जागिहै।4।