पद 251 से 260 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3
पद संख्या 255 तथा 256
(255)
राम! रावरो नाम साधु- सुरतरू है।
सुमिरे त्रिबिध धाम हरत, पूरत काम, सकल सुकृत सरसिजको सरू है।1।
लाभको लाभ , सुखहूको सुख ,सरबस, पतित-पावन , डरहूको डरू है।
नीचेहूको ऊँचेहूको, रंकहूको रावहूको , सुखद, सुलभ आपनो -सो घरू है।2।
बेद हू , पुरान हू , पुरारि हू पुकारि कह्यो, नाम-प्रेम चारिफलहूको फरू है।
ऐसे राम-नाम सो न प्रीति, न प्रतीति मन, मेरे जान, जानिबो सोई नर खरू है।3।
नाम-सो न मातु -पितु , मीत-हित, बंधु-गुरू, साहिब सुधी सुसील सुधाकरू है।
नामसों निबाह नेहु, दीनको दयालु! देहु, दासतुलसीको , बलि , बड़ो बरू है।4।
(256)
कहे बिनु रह्यो न परत , कहे राम! रस न रहत।
तुमसे सुसाहिबकी ओट जन खोटो-खरो, कालकी करमकी कुसाँसति सहत।1।
करत बिचार सार पैयत न कहूँ कछु, सकल बड़ाई सब कहाँ ते लहत?
नाथकी महिमा सुनि, समुझि आपनी ओर, हेरि हारि कै हहरि हृदय दहत।2।
सखा न, सुसेवक न, सुतिय न, प्रभु , आप , माय-बाप तुही साँचो तुलसी कहत।
मेरी तौ थोरी है, सुधरैगी बिगरियौ , बलि, राम! रावरी सौं, रही न रावरी चहत।3।