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पद 271 से 279 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 4

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पद संख्या 277 तथा 278

 (277)

श्राम राम राय! बिनु रावरे मेरे केा हितु साँचो?
स्वामी-सहित सबसों कहौं, सुनि-गुनि बिसेषि कोउ रेख दूसरी खाँचो।1।

देह-जीव-जोगके सखा मृषा टाँचन टाँचो।
किये बिचार सार कदलि ज्यों, मनि कनकसंग लघु लसत बीच बिचा काँचो।

‘बिनय-पत्रिका’ दीनकी बापु! टापु ही बाँचो।
हिये हेरि तुलसी लिखी, सेा सुभाय सही कहि बहुरि पूँछिये पाँचों।3।

(278)

पनव-सुवन! रिपु-दवन! भरतलाल! लखन! दीनकी।
निज निज अवसर सुधि किये, बलि जाउँ, दास-आस पूजि है खासखीनकी।1।

राज-द्वार भली सब कहै साधु-समीचीनकी।
सुकृत-सुजस, साहिब-कृपा, स्वारथ-परमारथ, गति भये गति-बिहीनकी।2।

समय सँभारि सुधारिबी तुुलसी मलीनकी।
प्रीति-रीति समुझाइबी रतपाल कृपालुहि परमिति पराधीनकी।3।