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पद 271 से 279 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 5
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पद संख्या 279
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मारूति-मन, रूचि भरतकी लखि लषन कही है।
कलिकालहु नाथ! नम सों परतीत प्रीति एक किंकरकी निबही है।1।
सकल सभा सुति लै उठी, जानी रीति रही है।
कृपा गरीब निवाजकी, देखत गरीबको साहब बाँह गही है।2।
बिहंसि राम कह्यो ‘सत्य है, सुधि मैं हूँ लही है’।
मुदित माथ नावत, बनी तुलसी अनाथकी,
परी रधुनाथ/(रघुनाथ हाथ) सही है।3।
(समाप्त )