भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परम प्रतापी श्री बृजेन्द्र महाराज धन्य / नाथ कवि

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परम प्रतापी श्री बृजेन्द्र महाराज धन्य,
आपके बड़ेन ही ने दिल्ली सर कीनी है।
मार-2 मुगलन कों धूरमें मिलाय दीनों,
सैंन ही में सैंन होत बीर रस भीनी है॥
बारह वर्ष भूरे भेड़ियान सों मचायो जंग,
मेंट बादशाही जाटशाही कर दीनी है॥
मार-मार मेवन कों बृज को बचायो ‘नाथ’
हिन्दुन की लाज आज तेंही रख लीनी है॥