Last modified on 20 अक्टूबर 2017, at 13:53

परियाँ / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

उनके ख़्वाबों में जिस तरह से परियाँ आती हैं
परियों के ख्वाबों में उस तरह से वो नहीं आते
वो आते भी हैं तो झुकते हैं
गुलाम बन जाते हैं
जब कि अपनी स्त्रियों के आगे वो ही नटनी की रस्सी से तन जाते हैं
उन्हीं परियों के इशारों पर अपना तन-मन-धन सब खो जाते हैं
जबकि परियों को परवाह नहीं
कुछ लेते हैं कि देते हैं कि वो आते हैं कि जाते हैं
वो परियों के लिए जी रहे हैं
जबकि परियों को उनके नाम तक भूल जाते हैं
परियों के पीछे भागते हुए वे हाँफ रहे हैं
परियों को कोई लेना देना नहीं
कि वे कब कहाँ और क्यों भाग रहे हैं
परियों की अपनी अलग दुनिया है जिसमें उनके अपने आते-जाते हैं
परियाँ बनावटी हँसी हँसती हैं
और वे फँस जाते हैं फँसे ही रह जाते हैं कर कुछ नहीं पाते हैं
इधर के न उधर के कहीं के भी नहीं रह पाते हैं
वे परियों की दुनिया में अस्तित्व खोने जाने क्यों जाते हैं