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पलकें हिलीं गाल पर नन्ही एक बूँद ढलकी / रंजना वर्मा
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पलकें हिलीं गाल पर नन्ही एक बूँद ढलकी।
जैसे भरी गगर हिलने से बूँद कोई छलकी॥
लम्बी राह देख कर जब भी पाँव कहीं ठिठके
थपकी मन की पड़ी पीठ पर प्यार भरी हलकी॥
इच्छाएँ अनन्त ले कर कहकर पत्थर जोड़े
यद्यपि खबर नहीं होती आने वाले पल की॥
खामोशी से घबरा कर जब-जब मन अकुलाया
छनक उठी है तनहाई में रुनझुन पायल की॥
स्वागत करता वर्तमान है बाहें फैलाये
घुला जा रहा है चिंता में लेकिन वह कल की॥
घूँघट सरका कर सन्ध्या का रजनी झाँक रही
धुले धुले मुखड़े पर जैसे रेखा काजल की॥
झिले किनारे खिले कास ने जब आँखें खोलीं
पवन उड़ाने लगी चुनरिया झीनी मलमल की॥