भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पल भर भी गर जी लें साथ / मृदुला झा
Kavita Kosh से
यह होगी अनुपम सौगात।
नील गगन में निकला चाँद,
जग-मग तारे सगरी रात।
अलसाई उन्मन है भोर,
फैली लाली उमगे गात।
मतवाली तितली चहुँ ओर,
फूलों पर करती आघात।
बगों में जब नाचे मोर,
समझो आई है बरसात।
आये जब आमों में बौर
कोयल कूके आधी रात।
विरहन के दुख का नहीं ओर,
नींद न आये बैरन रात।