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पाँव तो उस गली में धरते हैं / गुलाब खंडेलवाल
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पाँव तो उस गली में धरते हैं
दिल की आवारगी से डरते हैं
कुछ भी कहिये न आप फूलों को
ये घड़ी-दो घड़ी ठहरते हैं
ये वो मौसम है जिसके आने पर
लोग क्या-क्या न कर गुज़रते हैं
डूबने का मज़ा वे क्या जानें
जो किनारों की सैर करते हैं!
पूछा उसने कि यह गुलाब है कौन!
हम तो इस पूछने पे मरते हैं