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पाक है मोहब्बत म्हारी ना हे बदमाशी / धनपत सिंह
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पाक है मोहब्बत म्हारी ना हे बदमाशी
हीरामल तैं पहल्यां मनैं टुटणा है फांसी
पाक मोहब्बत दुनियां के म्हं सबतैं बड़ी करारी हो सै
फेर जी के लेणा हो सै जब अलग इलम का यारी हो सै
सबतैं बुरी बिमारी हो सै तपेदिक की खांसी
देख भाळ कै काम करो क्यूं खोट्टी मन म्हं ठाणता
इस महरग़ के मारयां नैं और कोए नहीं पिछाणता
हम जाणां या म्हारा जाणता म्हारी तबीयत की तलाशी
पाक मोहब्बत उलफत का बिलकुल झूठा पाळा होज्या
पहल्यां प्यार बणाले फेर साथ रहण का ढाळा होज्या
दरगाह म्हं मुंह काळा होज्या दुनियां करै हांसी
राम, रहीम म्हं फरक नहीं ना कोए किसे तैं हीणा हो सै
‘धनपत सिंह’ ओम’, अल्लाह का एक ही रकीणा हो सै
मथुरा वोहे, मदीणा हो सै, काबा वोहे कांशी