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पावस - 10 / प्रेमघन
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नाच रहे मन मोद भरे,
कल कुंज करैं किलकार कलापी।
गाय रहे मधुरे स्वर चातक,
मारन मन्त्र मनोज के जापी॥
झिल्लियाँ यों झनकारि कहैं,
मन मैं घन प्रेम पसारि प्रतापी।
आज गयो विरही जन के बध,
काज अरे यह पावस पापी॥