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पावस - 7 / प्रेमघन

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उड़ैं बक औलि अनेकन व्योम,
विराजत सैन समान महान।
भरे घन प्रेम रटैं कवि चातक,
कूकि मयूर करै रस गान॥
छनै छनही छन जोन्ह छुवै,
छिन छोर निसान छटा छहरान।
चलाहक पै जनु आवत आज,
है पावस भूपति बैठि विमान॥