पिआनो सोलो / निकानोर पार्रा / उज्ज्वल भट्टाचार्य
चूँकि इन्सान की ज़िन्दगी
थोड़ी दूरी पर
हरकतों के अलावा कुछ भी नहीं,
एक गिलास के अन्दर चमकता हुआ थोड़ा सा झाग;
चूँकि पेड़
सरकते पेड़ों के सिवा
कुछ भी नहीं;
कुछ भी नहीं
बस, हमेशा सरकती कुर्सी और मेज़;
चूँकि हम भी
सिर्फ़ जीवों के अलावा
कुछ भी नहीं
(जिस तरह ईश्वर का सिर
ईश्वर के अलावा कुछ भी नहीं);
अब जबकि हम
सिर्फ़ सुने जाने के लिये नहीं बोलते हैं
बल्कि ताकि दूसरे लोग भी बोल सकें
और गूँज उसे पैदा करने वाली आवाज़ से पहले आती है;
चूँकि हमें उथल-पुथल से भी
ढाढ़स नहीं मिलता है
जँभाई लेते हवा से भरे बगीचे में,
एक पहेली
अपनी मौत से पहले
जिसे सुलझाना है
ताकि हम बाद में फिर से बिन्दास जी उठें
जब हम औरत को अति की हद तक पहुँचा चुके हों;
चूँकि नरक में एक स्वर्ग भी है,
मुझे इजाज़त दीजिए कुछ सलाह देने की :
मैं पैर पटककर
शोर मचाना चाहता हूँ
मैं चाहता हूँ कि मेरी आत्मा को
क़ायदे का अपना जिस्म मिले ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य