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पीछे मुड़मुड़ कर नहीं देखा कभी / अजय अज्ञात
Kavita Kosh से
पीछे मुड़मुड़ कर नहीं देखा कभी
खौफ़ का मंज़र नहीं देखा कभी
बस निशाने पर रही मेरी नज़र
लक्ष्य से हट कर नहीं देखा कभी
जंग के मैदान में लड़ता हुआ
मोम का लश्कर नहीं देखा कभी
ख़्वाब आँखों में सजाता रह गया
ख़्वाब को जी कर नहीं देखा कभी
टीस जो देता रहा हर मोड़ पर
वक़्तसा ख़ंजर नहीं देखा कभी
जब जहाँ चाहा परिंदा उड़ गया
मयकदा मंदिर नहीं देखा कभी