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पुचकार दे, दुलार दे, माँ हंसवाहिनी तू / आनन्द बल्लभ 'अमिय'

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मूढ़ मतिमन्द को भी दे कवित्वशक्ति अम्ब!
ताकि द्वेष, वैर का समूल नाश हो सके।
लेखनी लिखे सदैव पीड़ निर्बलों की मातु,
जीवनी में दीन हीन के प्रकाश हो सके।
एक कामना नहीं; निजी, सभी पराये हित,
अम्ब! कोई जीव, जन्तु न निराश हो सके।
पुचकार दे, दुलार दे, माँ हंसवाहिनी तू,
ताकि जीवनी सुरम्य गुल पलाश हो सके।