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पूछो न जिंदगी का हमारी क्या हाल है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
पूछो न ज़िन्दगी का हमारी क्या हाल है।
मंहगाई के कारण हुआ जीना मुहाल है॥
हर जिंस है मंहगी नहीं रोटी है घरों में
फिर भी जो जिये जा रहा करता कमाल है॥
आज़ाद हुए हैं यही है दिल को तसल्ली
वरना ये बेबसी भी बड़ी बेमिसाल है॥
डीजल की है कीमत हुई पेट्रोल के जैसी
सस्ती है कौन चीज़ ये मुश्किल सवाल है॥
है खींचतान में ही ज़िन्दगी गुज़र रही
शायद इसी से भीड़ भी करती बवाल है॥
कुछ लोग दुरुपयोग कर रहे हैं पदों का
हैं लूट रहे जैसे कि सब अपना माल है॥
भगवान ही अब दे हमें सम्मान की रोटी
उसकी कृपा ही आज मात्र बनी ढाल है॥