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पैटर्न / केदारनाथ अग्रवाल
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‘पैटर्न’
वही है
पैसेवाला
ब्याह हो या चुनाव।
पैसे के
अभाव में
न ब्याह हुआ अच्छा
न चुनाव।
बड़ा बोलबाला है
पैसे ही पैसे का
घर और देश में।
पैसे पर टिका टिका
पैसे का प्रजातंत्र
जगह-जगह जीता है--
सिर धुनता
धुआँ-धुआँ पीता है।
रचनाकाल: १२-०२-१९७७