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प्यार की कोई कली दिल में खिलेगी क्या / रंजना वर्मा

प्यार की कोई कली दिल में खिलेगी क्या
बुझ गयी शम्मा है' जो फिर से जलेगी क्या

जाग पायेंगे कभी अरमान क्या दिल के
इन निगाहों को कभी मंजिल मिलेगी क्या

जो लिये बेचैनियाँ मन-कुंड से निकली
अश्रु गंगा-धार सागर से मिलेगी क्या

डूब कर मझधार में ही चैन पायेंगे
रेत में है नाव यह आगे चलेगी क्या

है अँधेरा घोर अब कुछ भी नहीं दिखता
हमसफ़र को भी कमी मेरी खलेगी क्या

सिन्धु के है पार जाना नाव कागज की
बह न पायेगी विवश हो कर गलेगी क्या

शम्भु की क्रोधाग्नि में है पंचशर जलता
देह पर यह भस्म रति अपनी मलेगी क्या